DESK: बिहार में जमीन खरीद-बिक्री के नियम में बड़ा बदलाव हुआ है। अब जमीन की रजिस्ट्री से पहले थर्ड पार्टी स्थल निरीक्षण करेगी। इसकी शुरुआत अप्रैल से की जा रही है। मंत्री सुनील कुमार वित्तीय वर्ष 2022-23 के मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग के बजट पर वाद-विवाद के बाद वह विधान परिषद में सरकार का उत्तर दे रहे थे। मंत्री ने यह भी बताया कि निबंधन विभाग के 11 नए कार्यालय खोले जा रहे हैं। कहा कि दस्तावेजों का डिजिटाइजेशन करा रहे हैं। इससे लोग देख सकेंगे पुराने समय में दस्तावेज कैसे होते थे। विभाग ने स्थल निरीक्षण जमीन निबंधन में गड़बड़ी पर रोक लगाने के लिए शुरू करा रहे हैं।
रजिस्ट्री के दिन ही मिल जाएंगे जमीन, फ्लैट के सभी कागजात
अब रजिस्ट्री से जुड़े कागजात के लिए लोगों को इंतजार नहीं करना पड़ेगा। रजिस्ट्री के दिन ही सभी कागजात मिले जाएंगे। आवेदकों को अब लोक सेवा गारंटी कानून यानी आरटीपीएस काउंटर पर भी नहीं जाना पड़ेगा। फिलहाल रजिस्ट्री करवाने के पांच दिन तक कागजात के लिए इंतजार करना पड़ता है। मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने इसके लिए सभी प्रमंडल और जिला अवर निबंधकों को निर्देश दिया है। इसमें उन्होंने कहा है कि आरटीपीएस की व्यवस्था मुख्यत: उन लोगों के लिए है, जिनके कागजातों में कोई भी समस्या नहीं हो। मद्य निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग ने अन्य फैसले में निबंधन कार्यालयों में दस्तावेज नवीसों के लिए शेड बनाने की बाध्यता को खत्म कर दिया है। इससे संबंधित 40 साल पुराने संकल्प को भी रद्द कर दिया है।
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अगले महीने से रजिस्ट्री महंगी हो सकती है
जमीन की रजिस्ट्री कराने के लिए सोच रहे हैं तो इस महीने ही करा लें। अगले महीने से रजिस्ट्री महंगी हो सकती है। जमीन की मिनिमम वैल्यू रेट यानी एमवीआर अगले महीने बढ़ सकती है। ऐसे में जमीन की रजिस्ट्री पर अधिक पैसे चुकाने पड़ेंगे। सरकार ने एमवीआर बढ़ाने की तैयारी कर ली है। इसके लिए कुछ जिलों की सलाह ली जा रही है। निबंधन विभाग इससे जुड़े होमवर्क को पूरा करने में लगा है। सरकार से मंजूरी मिलने ही जिला स्तर पर नए एमवीआर को लागू कर दिया जाएगा। उसके बाद बढ़ी दरों के आधार पर जमीन की रजिस्ट्री होगी। पिछली बार 2016 में एमवीआर बढ़ा था। तब ज्यादातर जिलों में 10 से 30 प्रतिशत दर बढ़ाई गई थी। इसके अलावा किसी सरकारी परियोजना के लिए किसी रैयत की जमीन अधिग्रहित की जाती है तो उस रैयत को मुआवजे के रूप में जमीन की कीमत एमवीआर के तहत दी जाएगी। इसके लिए संबंधित जिले के डीएम की गाइडलाइन को ध्यान में रखा जाता है।
जमीन के बाजार से ही तय होता एमवीआर
जमीन के बाजार मूल्य से मिनिमम वैल्यू रेट (एमवीआर) की दर तय होती है। इसे सरकार किसी जमीन की न्यूनतम कीमत मानती है। किसी खास क्षेत्र में खास तरीके की जमीन की हो रही खरीद-बिक्री में जो औसत बाजार मूल्य मिलता है, उसी के आसपास एमवीआर तय कर दिया जाता है। संबंधित जिलों के जिलाधिकारी इसे अधिसूचित करते हैं। अधिसूचित होने के बाद जमीन की रजिस्ट्री में उस खास तरह की जमीन का सरकार वही मूल्य मानकर चलती है। जमीन विक्रेता या खरीदार को उसी आधार पर निबंधन शुल्क तय करना होता है। अगर, कोई जमीन एमवीआर से कम कीमत में भी खरीदता है तो उसे निबंधन शुल्क एमवीआर के तहत ही देना पड़ता है।
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